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Writing tips, Likhne ka sahi tarika kya hai?

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Image from pixabay.com लिखने की प्रक्रिया को हम सब उत्तम समझते हैं। बचपन से ही हम सुनते आ रहे हैं जिन चीजों को हम याद रखना चाहते हैं उसे एक बार लिखो ज़रूर। बच्चों में यह आदत डालना थोड़ा मुश्किल होता है। मगर जिन बच्चों को लिखकर पढ़ने की आदत होती है उन्हे पढ़े हुए विषय की जानकारी हमेशा के लिए याद हो जाती है। आर्टिकल लिखने के लिए ज़रूरी टिप्स अगर आप कोई आर्टिकल लिख रहे हैं तो अपने अनुभव के साथ लिखें किसी भी आर्टिकल में अगर अनुभव दिखता है तो पाठक की रोचकता पढ़ने की और ज्यादा होती है। वह उस आर्टिकल में एक अनुभवी लेखक को पढ़कर लेखक के प्रति सम्मान भी जताते हैं। लिखना अपने आप में बहुत रोचक होता है क्योंकि जो बातें हम सोचते हैं उसे दो पल में भूल जाते हैं, मगर जो बातें हम लिखते हैं वह बातें हमारे दिमाग में बहुत दिनों तक रहती है।  जो भी हम कल्पना करते हैं उसे शब्दों में उतारने के बाद एक कहानी एक कविता एक पूरी किताब बन जाती है, लेकिन अगर हम लिखे नहीं और सिर्फ कल्पना करें तो क्या हम किसी को भी समझा पाएंगे? हम कहना क्या चाहते हैं?  अपने विषय को समझाने का एक ही सबसे सरल तरीका होता है कि उसे अच्छे और

2020 की दिवाली में कोरोना का डर

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  दिवाली की खरीदारी के बीच बेखौफ माहौल 2020 की दिवाली कोरोना वायरस से जूझ रही है। लोग बाहर तो जा रहे हैं लेकिन कुछ लोग पूरी सावधानी से मास्क, सैनिटाइजर के साथ दिख रहे हैं और कुछ लोग बिना मास्क लगाए ही भीड़ में आराम से अपने पूजा का सामान और पटाखों की ख़रीदारी कर रहे हैं। इन सबके बीच यह भूल जाना के करोना अब ख़त्म हो चुका है यह ग़लत होगा।  लेकिन एक अजीब सा बेखौफ नजारा देखने को मिला सड़कों पर, दुकानों में, सभी बिंदास, बिना मास्क के घूम रहें हैं। क्या यह सही था?  लोगों में यह डर कैसे खत्म हो गया है जबकि कोरोना अब तक खत्म नहीं हुआ है।  लोग एक दूसरे से संक्रमणीत हो रहें हैं। कारण बाहर निकलने पर पता चलता है, हम कित ने  लापरवाह हो गए हैं, आखिर कैसे? हम क्यों भूल जाते हैं अपने गुजरे हुए बुरे दिन को। जरा सोचिए जो लोग संक्रमणीत हो रहें हैं या हो रहें थे उनकी जुबानी उनकी कहानी सुनिए, तब पता चलेगा कोरोना होने के बाद का समय कैसे गुजरता है।  लोगों का एक कमरे में बंद रहना ना कहीं जाना, ना आना, ना कोई पास बैठने वाला और ना बात करने वाला और अगर ज्यादा संक्रमणीत हुए, सेहत साथ नहीं दिया तो लोग हॉस्पिटल के ब

Jeevan ko kaise Safal banaye

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समस्याओं को अपने गले लगा लो, मुस्कुराकर चुनौतियों को स्वीकार लो,  घबराकर वह कुछ पल में चला जायेगा,  हमारी शख्सियत के सामने ना टिक पायेगा। अक्सर हम देखते हैं कुछ लोग बहुत खुश दिखाई देते हैं, उनके चेहरे की आभा हमेशा चमकती रहती है। हमें उनको देखकर एहसास होता है कि उनके जीवन में कोई भी परेशानी नहीं है, वह हमेशा इतने शांत, सौम्य, उत्साहित दिखते हैं।  जिससे हमें यही लगता है हमारा जीवन भी ऐसा ही होता हम भी इतने खुश उत्साहित दिखाते।  यह संभव है मगर कैसे? यहीं हमेशा सोचते हुए मायूस हो जाते हैं, और अपने भाग्य को कोसते हैं कि हम क्यों नहीं खुश है और वह कैसे इतना खुश है। सबसे पहले तो हमें अपने अंदर से यह गलतफहमी निकाल देनी चाहिए कि सारी समस्याएँ भगवान ने हमें ही दी है बाकी लोग तो बहुत खुश हैं।  कभी आप उस जिंदादिल इंसान से मिले, बातें कीजिए, पूछे, आपको पता चलेगा समस्या तो उसके पास भी उतनी ही है लेकिन वह उन समस्याओं को समस्या या किस्मत का बोझ नहीं, जीवन का हिस्सा समझकर स्वीकार करता है, उन चुनौतियों को मुस्कुरा कर स्वीकार करता है। और फिर हर समस्या हर चुनौती उसके लिए आसान हो जाती है। परेशानियाँ कभी बत

Hindi motivational Blog

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  अभिलाषा कुछ करने की मन की अभिलाषा को पर लगने दो,  कुछ अपनी कहो, कुछ और की सुनो।  खुला है हर दरवाज़ा, बस खटखटाना है बाकी,  थोड़ी सी उलझनों से बाहर निकलना है बाकी। एक बात जो मैं अपने नज़रिये से देखती हूँ तो मुझे ऐसा लगता है, हर इंसान के अंदर बहुत सारी अभिलाषा है, लेकिन अपनी मन की उलझनों में दबाए वह पूरी ज़िंदगी पार कर लेता है। और मिलता क्या है अफ़सोस, निराशा।  क्या यह सही है? क्या यह गलत है? हम कई बार यहीं सोचते रह जाते हैं, और इसी सोच में डूब जाते हैं, बिखर जाते हैं। और ज़िंदगी कटती जाती है जिंदगी रुकेगी नहीं यह हर कोई जानता है मगर "खैर, छोड़ो" ऐसे शब्दों का सहारा लेकर हम रह जाते हैं। नुकसान होता जाता है मगर हर नुकसान का हिसाब बहुत महंगा पड़ता है। और हम एक समय के बाद हिसाब लगाना भी छोड़ देते हैं, और होता क्या है, मन की अभिलाषा का अंत होता है। समाज में विभिन्न प्रकार के लोग मिलेंगे, सभी के लिए हम अच्छे साबित हों यह नामुमकिन है। क्योंकि जब हमारा दिमाग हर वक्त एक सा नहीं रहता, तो हमारी बातें, हमारी सोच, हमारा काम, हमारा व्यवहार, कैसे एक सा हर वक्त रहेगा।  

"जरूरी है तो एक बदलाव बस खुद में"

क्या कहना और क्या नहीं कहना  इस जिंदगी के बारे में यह सोच-सोच कर कभी-कभी बहुत मन परेशान होता है।  मन की व्यथा चरम सीमा पर अब,  क्रंदन कर विलाप में डूबा चितवन,  करो कृपा हे जग के पालनहार,  अब ना सहा, ना व्यतीत हो पाएँ यह पल।। हर इंसान कितना परेशान है कोई खुद की सोच से, तो कोई समय परिवर्तन से, कोई समय के कहर से, तो कोई बदलती जिंदगी की रूपरेखा से। मगर यही कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें हर परिवेश, हर बदलाव, हर समस्या को स्वीकार कर आगे बढ़ना आता है, वह कभी रुकते नहीं है। चाहे कहर किसी भी रूप में हो, जूझना उन्हें आता है और कई बार मात खानी पड़ती है, मगर कोई गम नहीं! यही सोच उनकी उन्हें मझधार से किनारे लगाती है। बहुत सुंदर है यह जीवन, बस थोड़ा बदलाव बहुत सारी समस्याओं का हल है और थोड़ी नकारात्मकता से जूझना जरूरी है। क्योंकि जिंदगी हमारे लिए कभी नहीं रुकती, हाँ हम जरूर थक कर रुक जायेंगे और खो जायेंगे अंधेरों में। "जरूरी  है तो एक बदलाव बस खुद में" उम्मीद है मेरा यह ब्लॉग आपको अच्छा लगेगा यह मेरी एक सोच है और मैं इसको आधार मानती हूँ।

Hindi Quotes

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 साँप सीढ़ी के खेल से मैंने ज़िंदगी को जाना मुश्किलों को मात दे, हमें हैं आगे बढ़ते जाना,  मिलता कोई हमराही जो  ऊँचाइयों पर है चढ़ाता,  पर कहाँ देखा जाता सफ़लता आसमां को छूते हर किसी से, बीच राह डंक मार बेरहमी से नीचे वह गिराता,  पर ना डर के, ना चोट खाकर रूकती है ज़िंदगी,  फ़िर नया दांव चल आगे बढ़ती है ज़िंदगी।। करवा चौथ तेरी लंबी उम्र के लिए, व्रत करती हूँ, तुझमें ही समाकर  अपनी उम्र सौंप देती हूँ।

ब्लोग - इंसान की कभी ना खत्म होने वाली "जरूरत"

ब्लोग - इंसान की कभी ना खत्म होने वाली "जरूरत" कभी ना खत्म होने वाला यह शब्द "जरूरत" जिसका कोई अंत नहीं है। और मुझे लगता है मेरी तरह दूसरे लोग भी मेरी इस बात से सहमत होंगे कि इंसान की जरूरत कभी नहीं खत्म होती है।     ऐसा मैं अपने अनुभव से कह रही हूँ। हुआ यूँ कि मैं एक ट्रेन से यात्रा कर रही थी और मेरी सामने वाली सीट पर  दो लोग बैठे थे, एक नौजवान युवक जिसकी उम्र करीब 21 साल की होगी और साथ में उसके पिता जिनका नाम रामशंकर प्रसाद जी था। बातों ही बातों में मैं उनसे पूछी कि चाचा जी आपको क्या लगता है इंसान की सबसे महत्वपूर्ण जरूरत क्या है तो उन्होंने कहा बेटी मुझे लगता है इंसान की सबसे अहम जरूरत भोजन है जिसके बिना वह नहीं रह सकता। तो मैंने कहा वो तो ठीक है लेकिन बिना पैसे के भोजन कैसे आएगा तो पैसों की जरूरत अधिक महत्वपूर्ण है, उनका बेटा बोला नहीं पैसे के लिए काम की जरूरत है, नौकरी की जरूरत है बिना काम किए पैसे नहीं आ सकते, मैं उस पर भी हाँ कह दी और सोच रही थी सही तो है यहाँ हम तीन बैठे हैं और तीनों ने अपने अनुसार जरूरत को बाँट दिया है।