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 अभिलाषा कुछ करने की


मन की अभिलाषा को पर लगने दो, 

कुछ अपनी कहो, कुछ और की सुनो। 

खुला है हर दरवाज़ा, बस खटखटाना है बाकी, 


थोड़ी सी उलझनों से बाहर निकलना है बाकी।


एक बात जो मैं अपने नज़रिये से देखती हूँ तो मुझे ऐसा लगता है, हर इंसान के अंदर बहुत सारी अभिलाषा है, लेकिन अपनी मन की उलझनों में दबाए वह पूरी ज़िंदगी पार कर लेता है। और मिलता क्या है अफ़सोस, निराशा।

 क्या यह सही है? क्या यह गलत है? हम कई बार यहीं सोचते रह जाते हैं, और इसी सोच में डूब जाते हैं, बिखर जाते हैं। और ज़िंदगी कटती जाती है जिंदगी रुकेगी नहीं यह हर कोई जानता है मगर "खैर, छोड़ो" ऐसे शब्दों का सहारा लेकर हम रह जाते हैं। नुकसान होता जाता है मगर हर नुकसान का हिसाब बहुत महंगा पड़ता है। और हम एक समय के बाद हिसाब लगाना भी छोड़ देते हैं, और होता क्या है, मन की अभिलाषा का अंत होता है।


समाज में विभिन्न प्रकार के लोग मिलेंगे, सभी के लिए हम अच्छे साबित हों यह नामुमकिन है। क्योंकि जब हमारा दिमाग हर वक्त एक सा नहीं रहता, तो हमारी बातें, हमारी सोच, हमारा काम, हमारा व्यवहार, कैसे एक सा हर वक्त रहेगा।

 

एक छोटा सा उदाहरण में अपनी लेखनी को मानती हूँ, मेरी तरह कई लोगों की ये अभिलाषा होगी की मैं कुछ लिखूँ जिज्ञासा होगी मैं कोई सुंदर सी रचना रचू मगर एक सोच जो हमारे अंदर से बाहर नहीं निकलती है वह है "डर" गलती करने की, कहीं कोई आकार ना गलत हो, कोई शब्द ना गलत हो, मगर जरा सोचिए क्या गलती करने के डर से आप खुद को रोक तो लेंगे, मगर क्या आप  कभी सही लिख पाएंगें। क्योंकि ना आप लिखेंगे और ना आपकी गलतियाँ उजागर होंगी, ना कोई सुधरेगा और ना हम कभी सही लिख पाएंगे, हर गलती से सीख मिलती है हमें बस यही सोच कर आगे बढ़ना जरूरी है।


 अपनी अभिलाषा को उड़ने दीजिए, कैद ना कीजिए। बहुत जरूरी है, नहीं तो ठहराव आ जाएगा जीवन में। एक ठहराव आपके कई सपनों का दम तोड़ देगा। यह मेरी एक सोच है उम्मीद है इस ब्लॉग को आप सभी पसंद करेंगे।।



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जरूरी है तो एक बदलाव बस खुद में


क्या कहना और क्या नहीं कहना  इस जिंदगी के बारे में यह सोच-सोच कर कभी-कभी बहुत मन परेशान होता है। 


मन की व्यथा चरम सीमा पर अब, 

क्रंदन कर विलाप में डूबा चितवन, 

करो कृपा हे जग के पालनहार, 

अब ना सहा, ना व्यतीत हो पाएँ यह पल।।


हर इंसान कितना परेशान है कोई खुद की सोच से, तो कोई समय परिवर्तन से, कोई समय के कहर से, तो कोई बदलती जिंदगी की रूपरेखा से।

मगर यही कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें हर परिवेश, हर बदलाव, हर समस्या को स्वीकार कर आगे बढ़ना आता है, वह कभी रुकते नहीं है। चाहे कहर किसी भी रूप में हो, जूझना उन्हें आता है और कई बार मात खानी पड़ती है, मगर कोई गम नहीं! यही सोच उनकी उन्हें मझधार से किनारे लगाती है। बहुत सुंदर है यह जीवन, बस थोड़ा बदलाव बहुत सारी समस्याओं का हल है और थोड़ी नकारात्मकता से जूझना जरूरी है। क्योंकि जिंदगी हमारे लिए कभी नहीं रुकती, हाँ हम जरूर थक कर रुक जायेंगे और खो जायेंगे अंधेरों में।

"जरूरी  है तो एक बदलाव बस खुद में" उम्मीद है मेरा यह ब्लॉग आपको अच्छा लगेगा यह मेरी एक सोच है और मैं इसको आधार मानती हूँ।







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